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शहिद अमृता देवी विश्नोई
1730 ईसवी में भाद्रपद महीने (भारतीय चंद्र कैलेंडर) के 10 वें उज्ज्वल पखवाड़े के दिन अमृता देवी विश्नोई अपनी तीन बेटियों आसू, रत्नी और भागू बाई के साथ घर पर थीं। तभी अचानक उन्हें पता चला की मारवाड़ जोधपुर के महाराजा अभय सिंह के सैनिक उनके गांव खेजड़ली के पेड़ों को काटने आयें है।
खेजड़ी के पेड़ों की लकड़ियों का इस्तेमाल महाराजा अभय सिंह अपने नए महल के निर्माण में करना चाहते थे। थार रेगिस्तान में होने के बाद भी बिश्नोई गांवों में बहुत हरियाली थी और खेजड़ी के पेेेड़ बहुतायत में थे। इसलिए महाराजा अभय सिंह ने अपने आदमियों को खेजड़ी के पेड़ों से लकड़ियाँ प्राप्त करने का आदेश दिया तो उन हरे पेड़ों को बचाने के लिए, अमृता देवी विश्नोई ने अपनी तीन बेटियों आसू , रत्नी और भागू के साथ पेड़ों को बचाते हुए अपने प्राण त्याग दिए। उसके साथ 363 से अधिक अन्य बिश्नोई , खेजड़ी के पेड़ों को बचाने के लिए उस समय पेड़ों से चिपक गए और शहीद हो गए।